राष्ट्रप्रेम, लोकसेवा, त्याग, समर्पण एवं युवाओं की प्रेरणा के प्रतीक थे स्वातंत्र्य वीर सावरकर-डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र

                स्वातंत्र्य विनायक दामोदर सावरकर केवल नाम नहीं, एक प्रेरणा पुंज है जो आज भी देशभक्ति के पथ पर चलने वाले मतवालों के लिए जितने प्रासंगिक हैं उतने ही प्रेरणादायी भी। वीर सावरकर अदम्य साहस, इस मातृभूमि के प्रति निश्छल प्रेम करने वाले व स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने वाला अविस्मरणीय नाम है। राष्ट्रप्रेम, लोकसेवा, त्याग, समर्पण एवं युवाओं की प्रेरणा के प्रतीक थे स्वातंत्र्य वीर सावरकर। वीर विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को नासिक के भगूर ग्राम में हुआ था। सावरकर पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया। दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएँ लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई दस हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुनः लिखा। सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य योद्धा थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गए। वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दो-दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया। सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वे पहले स्नातक थे जिनकी स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया।



सावरकर ने हिंदू संगठन व समरसता पर कार्य प्रारम्भ कर दिया। महाराष्ट्र के में छुआछूत को लेकर घूम-घूमकर विभिन्न स्थानों पर व्याख्यान देकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक दृष्टि से छुआछूत को हटाने की आवश्यकता बतलाई। सावरकर के प्रेरणादायी व्याख्यान व तर्कपूर्ण दलीलों से लोग इस आंदोलन में उनके साथ हो लिए, दलितों में अपने को हीन समझने की भावना धीरे-धीरे जाती रही और वो भी इस समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है, ऐसा गर्व का भाव जागृत होना शुरू हो गया। सावरकर की प्रेरणा से भागोजी नामक एक व्यक्ति ने ढाई लाख रुपये व्यय करके रत्नागिरी में श्री पतित पावन मंदिर का निर्माण करवाया। दूसरी और सावरकर ने धर्मांतरण के विरोध में शुद्धि आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। रत्नागिरी में उन्होंने लगभग 350 धर्म-भ्रष्ट हिंदुओं को पुनः हिंदू धर्म में दीक्षित किया। सावरकर का जीवन आज भी युवाओं में प्रेरणा भर देता है। जिसे सुनकर प्रत्येक देशभक्त युवा के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। विनायक की वाणी में प्रेरक ऊर्जा थी। उसमें दूसरों का जीवन बदलने की शक्ति थी।