विश्व वंदनीय गुरु गोविंद सिंह शौर्य एवं साहस के सुदृढ़ स्तम्भ थे-डॉ. श्रीप्रकाश

गुरु गोविंद सिंह जी एक महान कर्मप्रणेता, अद्वितीय धर्मरक्षक, ओजस्वी वीर रस के कवि के साथ ही संघर्षशील वीर योद्धा भी थे। उनमें भक्ति और शक्ति, ज्ञान और वैराग्य, मानव समाज का उत्थान और धर्म और राष्ट्र के नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग एवं बलिदान की मानसिकता कुट-कुट कर भरी थी। विश्व वंदनीय गुरु गोविंद सिंह शौर्य एवं साहस के सुदृढ़ स्तम्भ थे। गुरु गोविंद सिंह में अटूट निष्ठा तथा दृढ़ संकल्प की अद्भुत प्रधानता थी। गुरु गोविंद सिंह जी केवल आदर्शवादी नहीं थे, बल्कि वे एक आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने मानवता को शांति, प्रेम, एकता, समानता एवं समृद्धि का रास्ता दिखाया। गुरु गोबिंद सिंह ने राष्ट्र रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। गुरु गोविंद सिंह व्यावहारिक एवं यथार्थवादी भी थे। गुरु गोविंद सिंह ने देश की अस्मिता, भारतीय विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए समाज को नए सिरे से तैयार करने के लिए उन्होंने खालसा के सृजन का मार्ग अपनाया।



गुरु गोविंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना देश के चौमुखी उत्थान की व्यापक कल्पना थी। बाबा बुड्‌ढाजी ने गुरु गोविंद सिंह को मीरी और पीरी दो तलवारें पहनाई थीं। जिसमें एक आध्यात्मिकता की प्रतीक थी, तो दूसरी नैतिकता यानी सांसारिकता की। खालसा के माध्यम से उन्होंने राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों को आकार दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को धर्म की पुरानी और अनुदार परंपराओं से नहीं बांधा बल्कि उन्हें नए रास्ते बताते हुए आध्यात्मिकता के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण दिखाया। गुरु गोविंद सिंह एक सिख के लिए संसार से विरक्त होना आवश्यक नहीं है तथा अनुरक्ति भी जरूरी नहीं है किंतु व्यावहारिक सिद्धांत पर सदा कर्म करते रहना परम आवश्यक है। गोविंद सिंह ने कभी भी जमीन, धन-संपदा, राजसत्ता-प्राप्ति या यश-प्राप्ति के लिए लड़ाइयां नहीं लड़ीं। उनकी लड़ाई होती थी अन्याय, अधर्म एवं अत्याचार और दमन के खिलाफ। युद्ध के बारे में वे कहते थे कि जीत सैनिकों की संख्या पर निर्भर नहीं, उनके हौसले एवं दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। जो नैतिक एवं सच्चे उसूलों के लिए लड़ता है, वह धर्मयोद्धा होता है तथा ईश्वर उसे विजयी बनाता है। श्री गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा जीवन परमात्मा के प्रति दृढ़ विश्वास और संपूर्ण समर्पण का आदर्श और अलभ्य उदाहरण है। आज नव भारत के निर्माण के लिए गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाओं को आत्मसात करने की आवश्यकता है।